घरेलू मसालों में प्रयोग में लाई जाने वाली अजवायन को प्रायः सभी जानते हैं। भारत के हर क्षेत्र में उसका उत्पादन होता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अजवायन हृदय के लिए हितकर, पाचक, रुचिकारक, तीक्ष्ण, गरम, जठराग्नि बढ़ाने वाली, कृमि, उलटी, दस्त, वात एवं कफनाशक, दंत रोग एवं बवासीर को नष्ट करने वाली है। वायुनाशक एवं पाचनशक्ति वर्द्धक होने से घरेलू औषधियों में अजवायन महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। हैजा की प्रारंभिक अवस्था में इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए प्रभावशाली औषधि है। आयुर्वेदिक का सुप्रसिद्ध योग एवं प्राणरक्षक औषधि ‘अमृतधारा’ का अभिन्न घटक अजवायन-सत है।

प्रसव के पश्चात स्त्रियों को अजवायन देना लाभदायक होता है। पाचन ठीक से होता है। भूख बढ़ती है। कमरदरद का निवारण होता है। अजवायन के जल से योनि-प्रक्षालन करने से गर्भाशय की शुद्धि होती है और हानिकारक वैक्टीरिया के संक्रमण से बचाव होता है।
अजवायन में कीटनाशक एवं सड़ननिवारक गुण होने से इसका काढ़ा बनाकर, उस पानी से घाव धोने से घाव शीघ्रता से भर जाते हैं। भगंदर, फोड़ा, घाव, खाज-खुजली, दाद इत्यादि में अजवायन के पानी का प्रयोग किया जाता है।
अकेली अजवायन को सैकड़ों प्रकार के अन्न पचाने वाली औषधि कहा गया है।
इन्हें भी देखें :
हमारे यूट्यूब चैनल पर जाएं – 100K Family
विभिन्न रोगों में प्रयोग
सरदी-जुकाम में – अजवाइन सरदी-जुकाम एवं कफ-निवारण में प्रभावी औषधि vec 6 । थोड़ी-सी अजवायन को तबे पर गरमकर सूती कपड़े में रखकर पोटली-सी बाँधकर रोगी को सुँघाएँ। इस प्रयोग से छींकें आएँगी तथा जुकाम का कष्ट कम होगा। इस प्रयोग से नजला और मस्तिष्क के कृमि नष्ट हो जाते हैं। सिरदरद बंद हो जाता है। सरदी-जुकाम के समय गरम पानी का सेवन करना चाहिए।
शराब की बुरी लत छुड़ाने के लिए – अजवायन को सेंककर सुरक्षित शीशी में भरकर रखें। – जब भी शराब पीने का मन करे, एक चुटकी अजवायन मुँह में डालकर चबाते रहिए। इससे शराब की बुरी आदत से छुटकारा मिलेगा।
दूध के अपच में – पाचनशक्ति कमजोर होने दूध ठीक तरह से नहीं पच पाता; ऐसी स्थिति में दूध धीरे-धीरे घूँट-घूँटकर पीना चाहिए। दूध पीने के बाद 3 ग्राम अजवायन सेंककर मुँह में रखकर चबाते रहिए।
शारीरिक पीड़ा में— शारीरिक दरद-निवारण के लिए जहाँ पर दरद हो रहा हो, उस स्थान पर अजवायन सेंककर, पीसकर गरम पानी में लेप करें तथा लेप पर हलका सेंक करें। इससे दरद से छुटकारा मिलेगा। रक्त-संचार का अवरोध मिटेगा।
कष्टार्त्तव (मासिक धर्म में रुकावट ) – 4 ग्राम अजवायन सुबह एवं शाम 1 गिलास गरम दूध के साथ देने से माहवारी खुलकर आने लगती है।
त्वचा संबंधी विकारों में – आग से जले हुए घाव, कृमियों के कारण उत्पन्न घाव, खाज-खुजली, दाद इत्यादि विभिन्न चर्म विकारों में अजवायन को पानी के साथ पीसकर गाढ़ा लेप लगाएँ। इससे शीघ्रता से लाभ होगा।
पेटदरद एवं पाचनशक्ति की कमी में – वायु विकार एवं अपच के कारण पेटदरद हो रहा हो तो अजवायन, काली मिर्च एवं सेंधानमक तीनों को पीसकर गरम पानी के साथ 3 – 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से पाचनशक्ति तेज होती है। पेटदरद से राहत मिलती है।
पेट फूलने में— पाचक रस यथेष्ट मात्रा में स्रवित न होने से पेट फूलने जैसी व्याधियाँ जन्म लेती हैं। अजवायन 100 ग्राम, छोटी (बाल) हरड़ 50 ग्राम, घी से सेंकी हुई हींग 25 ग्राम, सेंधानमक 25 ग्राम का चूर्ण बनाकर, सबको मिलाकर एक काँच की शीशी में रखें। नित्य सुबह-शाम 3 ग्राम चूर्ण, गरम पानी के साथ सेवन कराने से पेट के इन विकारों से मुक्ति मिलती हैं।
उदर के कृमि रोग में – पेट विद्यमान हानिकारक कृमियों को नष्ट करने के लिए प्रातःकाल खाली पेट 4 ग्राम अजवायन पीसकर चुटकीभर काला नमक और एक गिलास छाछ के साथ 7 दिन तक नित्य सेवन कराने से कृमि नष्ट हो जाते हैं।
अजवायन चूर्ण बनाकर तथा काला नमक मिलाकर गरम पानी के साथ पिलाने से बच्चों के कृमि रोग में लाभ मिलता है। पेट फूलने में भी लाभप्रद है।
बच्चों के उलटी-दस्त में – बालकों को उलटी-दस्त हों तो माँ के दूध में अजवायन को घिसकर लेप बनाकर मिलाकर, पिलाया जाता हैं।
उलटी, दस्त, हैजा में ( अमृतधारा ) – जीवनरक्षण के लिए अजवायन सत, पिपरमेंट सत तथा कर्पूर को मिलाकर ‘अमृतधारा’ बनाई जाती है। 4-5 बूंद दवा बताशे पर टपकाकर खिलाते हैं। यह बड़ी प्रभावशाली असरदार दवा है। उलटी-दस्त तथा हैजा की प्रारंभिक अवस्था (शुरुआत) में यह बेहद लाभदायक है। दिव्यधारा, अमृतधारा, कर्पूरासव इत्यादि नाम से औषधि आयुर्वेदिक औषधालयों में उपलब्ध होती है।
बहुमूत्र में – अजवायन को पीस लें तथा बराबर – मात्रा में गुड़ लेकर 3-3 ग्राम की गोली बनाकर रख लें। दिन में तीन बार सेवन कराएँ, उन बच्चों को जो नींद में ही पेशाब कर देते हैं, उनके लिए यह प्रयोग हितकर है।
आँखों की फूली में एवं दंत रोगों में – आँखों में फूली होने पर अजवायन को जलाकर उसकी भस्म को कपड़े से छानकर सुरमे के समान आँखों में आँजने से फूली कट जाती है। इसी चूर्ण से दाँतों का मंजन करने से दाँतों तथा मसूड़ों के सभी रोगों का निवारण होता है।
सूखी खाँसी में – 3 ग्राम अजवायन को पान के साथ सेवन कराने से सूखी खाँसी दूर होती है। इस पान को खाते समय बाहर न थूकें, लार को निगलना चाहिए।
अनेक रोगों में उपयोगी नुसखा- अजवायन सत 10 ग्राम, देशी कर्पूर 20 ग्राम तथा पिपरमेंट सत 10 ग्राम, इन तीनों औषधियों को मिलाकर एक वायुरोधी काँच की शीशी में रखकर ढक्कन को अच्छी तरह लगाकर रख दें। देखेंगे कि तीनों औषधियाँ जो ठोस रूप में थीं, वह द्रव अवस्था में पानी के समान हो जाती हैं। यह औषधि अनेक रोगों से बचाने वाली होने के कारण इसे ‘जीवनरक्षक अमृत’ कहते हैं।
दाढ़ एवं दाँतदरद, तेज सिरदरद, छाती का दरद, कमर का दरद, संधिवात की सर्वांग पीड़ा इत्यादि में इस दवा की कुछ बूँद डालकर मालिश करने से तुरंत प्रभाव दिखाई देता है। हैजा की बीमारी में बताशे पर 4 – 5 बूँद टपकाकर बार – बार देकर अनेक रोगियों की प्राणरक्षा हुई है। बिच्छू, ततैया, बर्र इत्यादि तथा विषैले जानवरों के दंश में भी इस दवा की मालिश की जा सकती है। अतिसार (दस्त), उलटी, श्वास, पेटदरद, गोला इत्यादि में शक्कर या बताशे के साथ यह औषधि बड़ी लाभकारी है।
इस औषधि की 4 बूँदें शहद के साथ सेवन कराने से स्त्रियों के ऋतु संबंधी समस्त रोगों का शमन होता हैं। यह हर घर में उपलब्ध रहना चाहिए।