गेहूं की खेती
हमारे देश का गेहूं की खेती और उत्पादन में प्रमुख स्थान है। पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं। भारत देश आज 8 करोड़ टन से अधिक गेहूं का उत्पादन कर रहा है। हालांकि, देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए गेहूं उत्पादन में वृद्धि की और अधिक आवश्यकता है। इसके लिए गेहूं की उन्नत उत्पादन तकनीकियों को अपनाने की आवश्यकता है।
इन तकनीकियों में किस्मों का चुनाव, बोने की विधियां, बीज दर, पोषक तत्व प्रबंधन, सिंचाई प्रबन्धन, खरपतवार नियन्त्रण तथा फसल संरक्षण आदि प्रमुख है।
Wheat Farming

उपयुक्त जलवायु: – गेहूं के बीज अंकुरण के लिए 20 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उचित रहता है। गेहूं की पैदावार के लिए 27 डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान होने पर विपरीत प्रभाव होता है। फूल आने के समय कम तथा अधिक तापमान हानिकारक होता है।
भूमि का चयन:- सिंचाई के क्षेत्रों में गेहूं की खेती हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, किन्तु अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी से चिकनी दोम मिट्टी, समतल एवं जल निकास वाली उपजाऊ भूमि अधिक उपयुक्त है। गेहूं के लिये अधिक लवणीय एवं क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है। जहां पर एक मीटर तक कठोर परती जमीन हो, वहां गेहूं की खेती नहीं करनी चाहिए।
खेती की तैयारी :-
भारी मिट्टी के खेतों की तैयारी- भारी मिट्टी के खेतों में मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई गर्मी में उत्तर से दक्षिण में करके खेत को खाली छोड़ दें। वर्षा के दिनों में दो तीन बार आवश्यकतानुसार खेत की जुताई करते रहें, जिससे खेत में खरपतवार न जमें। वर्षा उपरान्त एक जुताई और करके सुहागा लगा कर खेत को बोनी के लिए तैयार कर दें।
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हल्की मिट्टी के खेतों की तैयारी :-
हल्की मिट्टी वाले खेतों में गर्मी की जुताई न करें। वर्षा के दिनों में तीन बार आवश्यकतानुसार जुताई करें व सुहागा लगाकार खेत को बुआई के लिये तैयार करें। सिंचाई और सघन खेती वाले क्षेत्रों में उपरोक्त दोनों प्रकार की भूमि की जुताइयां आवश्यकतानुसार करें।
उन्नत किस्में :-
गेहूं उत्पादक किसान बन्धुओं को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिकतम उपज देने वाली के साथ-साथ विकार रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। ताकि इस फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सके।
बुवाई का समय उत्तर :-
पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में सिंचित दशा में गेहूं बोने का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा है। लेकिन उत्तरी-पूर्वी भागों में मध्य नवम्बर तक गेहूं बोया जा सकता है। देर से बोने के लिए उत्तर-पश्चिमी मैदानों में 25 दिसम्बर के बाद तथा उत्तर-पूर्वी मैदानों में 15 दिसम्बर के बाद गेहूं की बुवाई करने से उपज में भारी हानि होती है। इसी प्रकार बारानी क्षेत्रों में अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुवाई करना उत्तम रहता है। यदि भूमि की ऊपरी सतह में संरक्षित नमी प्रचुर मात्रा में हो तो गेहूं की बुवाई 15 नवम्बर तक कर सकते हैं।
बीज की मात्रा :-
बीज साफ, स्वस्थ एवं खरपतवारों के बीजों से रहित होने चाहिए। सिकुड़े, छोटे एवं कटे-फटे बीजों को निकाल देना चाहिए। हमेशा उन्नत, नई तथा क्षेत्र विशेष के लिए संस्तुत प्रजातियों का चयन करना चाहिए। बीज दर दानों के आकार, जमाव प्रतिशत, बोने का समय, बोने की विधि और भूमि की दशा पर निर्भर करती है। सामान्यतः यदि 1000 बीजों का भार 38 ग्राम है, तो एक हेक्टेयर के लिए लगभग 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि दानों का आकार बड़ा या छोटा है, तो उसी अनुपात में बीज दर घटाई या बढ़ाई जा सकती है।
इसी प्रकार सिंचित क्षेत्रों में समय से बुवाई के लिए 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। लेकिन सिंचित क्षेत्रों में देरी से बोने के लिए 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। लवणीय तथा क्षारीय मृदाओं के लिए बीज दर 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। सदैव प्रमाणित बीजों का प्रयोग करना चाहिए और हर तीसरे वर्ष बीज बदल देना चाहिए।
बीज उपचार :- गेहूं की खेती अधिक उपज के लिए बीज अच्छी किस्म का प्रमाणित ही बोना चाहिये एक हैक्टर में प्रयोग होने वाले सम्पूर्ण बीज को उपचारित करने के बाद बीज को छाया में सूखा कर बुआई करनी चाहिये।
बुवाई की विधि पोषक तत्व प्रबंधन:-
गेहूं उगाने वाले ज्यादातर क्षेत्रों में नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है तथा फास्फोरस और पोटाश की कमी भी क्षेत्र विशेष में पाई जाती है। पंजाब, हरिया-णा, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में गंधक की कभी भी पाई गई है। इसी प्रकार सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जस्ता, मैंगनी-ज़ तथा बोरॉन की कमी गेहूं उगाये जाने वाले क्षेत्रों में देखी गई है। इन सभी तत्वों की भूमि में मृदा परीक्षण को आधार मानकर आवश्यक -तानुसार प्रयोग करना चाहिए। लेकिन ज्यादातर किसान विभिन्न कारणों से मृदा परीक्षण नहीं करवा पाते हैं।
सिंचाई प्रबंधन :-
बुवाई के पश्चात फसल की क्रान्ति को अवस्थाओं पर सिंचाई करने से 6 सिंचाई पर्याप्त होती है। प्रथम सिंचाई शीर्ष जड़ जमते समय जब फसल 20 से 25 दिन की हो जाये तब करनी चाहिये। दूसरी सिंचाई जब कल्ले बनने लगे तथा फसल 45 से 50 दिन की हो जाये, तीसरी सिंचाई गाँठ बनते समय बुवाई के 65 से 70 दिन बाद, चौथी सिंचाई बालियाँ निकलते समय बुवाई के 85 से 90 दिन बाद, पाँचवी सिंचाई 100 से 110 दिन बाद जब फसल दूधिया अवस्था में हो तथा अंतिम सिंचाई दाना पकते समय करनी चाहिये, जब फसल 115 से 120 दिन की हो जाये। यदि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो तथा चार सिंचाई ही दे सकते हो तो शीर्ष जड़ बनते समय, गाँठ बनते समय, बालियां निकलते समय और दाना पकते समय करनी चाहिये ।
खरपतवार नियंत्रण :-
गेंहू की फसल के साथ अनेकों खरपतवार जिनमें गोयला, चील, प्याजी, मोरवा, गुल्ली डन्डा व जंगली जई इत्यादि उगते हैं और पोषक तत्व, नमी व स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा कर फसल उत्पादन को काफी कम कर देते है। अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उचित खरपतवार नियंत्रण उचित समय पर करना बहुत ही आवश्यक है।
पौध संरक्षण कटाई एवं मड़ाई: जब पौधे पीले पड़ जाये तथा बालियां सूख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये। जब दानों में 15 से 20 प्रतिशत नमी हो तो कटाई का उचित समय होता है। कटाई के पश्चात् फसल को 3 से 4 दिन सूखाना चाहिये तथा मड़ाई करके अनाज में जब 8 से 10 प्रतिशत नमी रह जाये तो भंडारण कर देना चाहिये।
पैदावार :- गेहूं की फसल से उपज, किस्म के चयन, खाद और • उर्वरक के उचित प्रयोग और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है। लेकिन सामान्यतः उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर 40 से 70 कुन्तल प्रति हैक्टर तक अनाज की उपज प्राप्त की जा सकती है।
गेहूं की खेती से अधिक पैदावार के लिए आवश्यक बिंदु
1. गेहूं की खेती के लिए शुद्ध एवं प्रमाणित बीज की बुआई बीज शोधन के बाद की जाए।
2. प्रजाति का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता एवं समय विशेष के अनुसार किया जाए।
3. गेहूं की खेती हेतु दो वर्ष के बाद बीज अवश्य बदल दीजिए।
4. संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर सही समय पर उचित विधि से किया जाए।
5. क्रान्तिक अवस्थाओं (ताजमूल अवस्था एवं पुष्पावस्था) पर सिंचाई समय से उचित विधि एवं मात्रा में की जानी चाहिए।
6. गेहूं की खेती में कीड़ों एवं बीमारीयों से बचाव हेतु विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
7. गेहूं की खेती में कीट और रोगों का प्रकोप होने पर उसका नियंत्रण समय से किया जाना चाहिए।
8. गेहूं की खेती के जीरोटिलेज एवं रेज्ड वेड विधि का प्रयोग किया जाए।
9. गेहूं की खेती हेतु खेत की तैयारी के लिए रोटवेटर हैरो का प्रयोग किया जाना चाहिए।
10. गेहूं की खेती में अधिक से अधिक जीवांश खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
11. गेहूं की खेती के लिए यथा सम्भव आधी खादों की मात्रा जीवांश खादों से पूरी की जानी चाहिए।
12. किसी भी प्रकार की खाद का अंधाधुंध प्रयोग न करें, उनकी संतुलित मात्रा फसल के लिए अच्छी रहती है।
13. गेहूं की खेती हेतु जिंक और गंधक की कमी वाले खेतों में बुवाई से पहले इनकी संतुलित मात्रा अवश्य डालें।