अपने दैनिक जीवन में हम नींबू , इमली , नमक , शक्कर और सिरके जैसे अनेक पदार्थों का उपयोग करते हैं । इन सभी को इस्तेमाल करने के पश्चात अगर हम इनके स्वाद को गुणों के आधार पर अलग अलग करें तो हमें क्या ज्ञात होता है?
क्या इन सबका स्वाद एक समान होता है ?
बिल्कुल नहीं। इन सभी का स्वाद अलग अलग होता है कुछ का खट्टा होता है कुछ का कड़वा होता है कुछ का मीठा तो कुछ का नमकीन होता है।

अगर इनका स्वाद अलग अलग होता है तो क्या हम इसे चक्कर ही पता कर सकते हैं? या फिर इसका कोई दूसरा उपाय भी होता है?
तो चलिए जानते हैं पहले की खट्टी चीजों को क्यों हमने बोला जाता है? और कड़वी चीजों को क्यों छार बोला जाता है?
अम्ल और क्षारक
दही , नींबू का रस , संतरे का रस और सिरके का स्वाद खट्टा होता है । इन पदार्थों का स्वाद खट्टा इसलिए होता है क्योंकि इनमें अम्ल ( एसिड ) होते हैं । ऐसे पदार्थों की रासायनिक प्रकृति अम्लीय होती है । एसिड शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द एसियर से हुई है , जिसका अर्थ है खट्टा । इन पदार्थों में पाए जाने वाले अम्ल प्राकृतिक अम्ल होते हैं।

खाने का सोडा ( बेकिंग सोडा ) कैसा होता है ?
क्या इसका स्वाद भी खट्टा है ?
यदि नहीं , तो इसका स्वाद कैसा है ?
क्योंकि इसका स्वाद खट्टा नहीं है , जिसका मतलब है , इसमें कोई अम्ल नहीं है । इसका स्वाद कड़वा है । यदि आप इसके विलयन को अपनी अँगुलियों के बीच रगड़ें , तो यह साबुन जैसा चिकना लगता है । सामान्यतः ऐसे पदार्थ , जिनका स्वाद कड़वा होता है और जो स्पर्श करने पर साबुन जैसे लगते हैं क्षारक कहलाते हैं । इन पदार्थों की प्रकृति क्षारकीय कहलाती है ।

यदि हम किसी पदार्थ को चख नहीं सकते हैं , तो हमें उसकी प्रकृति कैसे ज्ञात होगी ?
कोई पदार्थ अम्लीय है अथवा क्षारकीय , इसका परीक्षण करने के लिए विशेष प्रकार के पदार्थों का उपयोग किया जाता है । ये पदार्थ सूचक कहलाते हैं ।
सूचकों को जब अम्लीय अथवा क्षारकीय पदार्थयुक्त विलयन में मिलाया जाता है , तो उनका रंग बदल जाता है । हल्दी , लिटमस , गुड़हल की पंखुड़ियाँ आदि कुछ प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूचक हैं ।
क्या आप जानते हैं ?
अम्ल का नाम | किसमें पाया जाता है? |
ऐसीटिक अम्ल | सिरका |
फ़ॉर्मिक अम्ल | चींटी का डंक |
साइट्रिक अम्ल | नींबू कुल के ( सिट्स ) फल जैसे संतरा , नींबू आदि। |
लैक्टिक अम्ल | दही |
ऑक्सेलिक अम्ल | पालक |
ऐस्कॉर्बिक अम्ल ( विटामिन C ) | आँवला , सिट्रस फल |
टार्टरिक अम्ल | इमली , अंगूर , कच्चे आम आदि। |
ऊपर बताए गए सभी अम्ल प्रकृति में पाए जाते हैं।
क्षारक का नाम | किसमें पाया जाता है? |
कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड | चूने का पानी |
अमोनियम हाइड्रॉक्साइड | खिड़की के काँच आदि साफ़ करने के लिए उपयुक्त मार्जक । |
सोडियम हाइड्रॉक्साइड / पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड | साबुन |
मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड | दूधिया मैग्नीशियम ( मिल्क ऑफ मैग्नीशिया ) |
हमारे आस – पास के प्राकृतिक सूचक
लिटमसः एक प्राकृतिक रंजक
सबसे सामान्य रूप से उपयोग किया जाने वाला प्राकृतिक सूचक लिटमस है । इसे लाइकेनों ( शैक ) से निष्कर्षित किया जाता है । आसुत जल में इसका रंग मॉव ( नीलशोण ) होता है । जब इसे अम्लीय विलयन में मिलाया जाता है , तो यह लाल हो जाता है और जब क्षारीय विलयन में मिलाया जाता है तो यह नीला हो जाता है । यह विलयन के रूप में अथवा कागज़ की पट्टियों के रूप में उपलब्ध होता है , जिन्हें लिटमस पत्र कहते हैं । सामान्यतः यह लाल और नीले लिटमस पत्र के रूप में उपलब्ध होता है ।

जब नीले लिटमस पेपर को अम्ल के विलयन में डालते हैं तो इसका रंग लाल हो जाता है और जब क्षार के विलयन में डालते हैं तो लाल लिटमस पेपर का रंग नीला हो जाता है।
ऐसे विलयन जो नीले लिटमस पेपर या लाल लिटमस पेपर के रंग को परिवर्तित नहीं करते हैं उदासीन कहलाते हैं। ऐसे पदार्थ ना तो अम्लीय होते हैं और ना ही क्षारीय।
हल्दी एक अन्य प्राकृतिक सूचक है
एक चम्मच हल्दी पाउडर लीजिए । इसमें थोड़ा जल मिलाकर इसका पेस्ट बनाइए । स्याही सोख्ता ( ब्लॉटिंग पेपर ) या फ़िल्टर पत्र पर हल्दी का पेस्ट लगाकर हल्दी पत्र बनाइए और उसे सुखा लीजिए । हल्दी पत्र की पतली – पतली पट्टियाँ काट लीजिए । हल्दी पत्र की पट्टी पर एक बूँद साबुन का विलयन डालिए ।

साबुन का विलयन क्षारीय होता है जैसे ही हम इसके ऊपर डालते हैं तो उसका रंग हल्का लाल हो जाता है जबकि अम्ल के साथ यह पीला रंग ही देता है।
सूचक के रूप में ” गुड़हल के पुष्प ”
गुड़हल के पुष्प की कुछ पंखुड़ियाँ एकत्र कीजिए और उन्हें किसी बीकर में रख दीजिए । इसमें थोड़ा गरम जल मिलाइए । मिश्रण को कुछ समय तक रखिए , जब तक जल रंगीन न हो जाए । रंगीन जल को सूचक के रूप में उपयोग कीजिए ।

गुड़हल के पुष्प का सूचक अम्लीय विलयन को मैजेंटा या गुलाबी रंग देता है और क्षारीय विलयन पर हरा रंग देता है।
उदासीनीकरण
हमें ज्ञात है कि अम्ल नीले लिटमस को लाल कर देते हैं और क्षारक लाल लिटमस को नीला कर देते हैं ।
आइए ,अब यह देखें कि जब किसी अम्ल को किसी क्षारक में मिलाया जाता है , तो क्या होता है ?
इसके लिए हम अलग प्रकार के सूचक का उपयोग करते हैं। जिसका आपने अभी तक उपयोग नहीं किया है । इसे फ़िनॉल्फथेलिन कहते हैं ।

जब विलयन क्षारकीय होता है , तो फ़िनॉल्फथेलिन गुलाबी रंग देता है । इसके विपरीत जब विलयन अम्लीय होता है , तो यह रंगहीन रहता है । जब किसी अम्लीय विलयन में क्षारकीय विलयन मिलाया जाता है तो दोनों विलयन एक दूसरे के प्रभाव को उदासीन कर देते हैं । जब किसी अम्ल और क्षारक के विलयन को उचित मात्रा में मिलाया जाता है , तो विलयन की प्रकृति न तो अम्लीय रहती है और न ही क्षारकीय ।
दूसरे शब्दों में , अम्ल तथा क्षारक दोनों की ही प्रकृति लुप्त हो जाती हैं । इस प्रकार बना विलयन न तो अम्लीय होता है और न ही क्षारकीय । उदासीनीकरण के तत्काल बाद ऊष्मा निकलती है , अर्थात् निर्मुक्त होती है । निर्मुक्त ऊष्मा से अभिक्रिया मिश्रण का ताप बढ़ जाता है ।
उदासीनीकरण अभिक्रिया में नया पदार्थ निर्मित होता है , जो लवण कहलाता है ।

लवण अम्लीय , क्षारकीय अथवा उदासीन प्रकृति का हो सकता है । अतः उदासीनीकरण को निम्न रूप में परिभाषित किया जा सकता है :
‘ किसी अम्ल और किसी क्षारक के बीच होने वाली अभिक्रिया उदासीनीकरण कहलाती है । इस प्रक्रम में ऊष्मा के निर्मुक्त होने के साथ – साथ लवण और जल निर्मित होते हैं । ‘
” क्या आप अम्ल वर्षा शब्द से परिचित हैं ?
क्या आपने कभी अम्ल वर्षा के क्षतिकारी प्रभावों के बारे में सुना है ? जैसा कि नाम से पता चलता है , जब वर्षा जल में अम्ल की मात्रा अत्यधिक होती है , तो वह अम्ल वर्षा कहलाती है । वर्षा जल में ये अम्ल कहाँ से आते है ? वर्षा जल , अम्लीय इसलिए हो जाता है , क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड , सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी गैसें ( जो वायु में प्रदूषकों के रूप में निर्मुक्त होती है ) वर्षा जल में घुलकर क्रमशः कार्बोनिक अम्ल , सल्फ्यूरिक अम्ल और नाइट्रिक अम्ल बनाती हैं । अम्ल वर्षा , भवनों , ऐतिहासिक इमारतों , पौधों और जंतुओं को क्षति पहुँचा सकती है । ”
अम्ल + क्षारक → लवण + जल
( ऊष्मा निर्मुक्त होती है )
निम्नलिखित अभिक्रिया इसका उदाहरण है :
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ( HCI ) + सोडियम हाइड्रॉक्साइड ( NaOH ) → सोडियम क्लोराइड ( NaCl ) + जल ( H2O ) + ( ऊष्मा )
दैनिक जीवन में उदासीनीकरण के उदाहरण
अपाचन
हमारे आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पाया जाता है । यह भोजन के पाचन में हमारी सहायता करता है , लेकिन आमाशय में अम्ल की आवश्यकता से अधिक मात्रा होने से अपाचन हो जाता है । कभी – कभी अपाचन काफी कष्टदायक होता है । अपाचन से मुक्ति पाने के लिए हम दूधिया मैग्नीशियम जैसा कोई प्रतिअम्ल लेते हैं जिसमें मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड होता है । यह अत्यधिक अम्ल के प्रभाव को उदासीन कर देता है ।
चींटी का डंक
जब चींटी काटती है तो यह त्वचा में अम्लीय द्रव डाल देती है । डंक के प्रभाव को नमीयुक्त खाने का सोडा ( सोडियम हाइड्रोजनकार्बोनेट ) अथवा कैलेमाइन विलयन मलकर उदासीन किया जा सकता है , जिसमें जिंक कार्बोनेट होता है ।
मृदा उपचार
रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग मृदा को अम्लीय बना देता है । यदि मृदा अत्यधिक अम्लीय • अथवा अत्यधिक क्षारकीय हो , तो पादपों ( पौधों ) की वृद्धि अच्छी नहीं होती । जब मृदा अत्यधिक अम्लीय होती है , तो उसे बिना बुझा हुआ चूना ( कैल्सियम ऑक्साइड ) अथवा बुझा हुआ चूना ( कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड ) जैसे क्षारकों से उपचारित किया जाता है । यदि मृदा क्षारकीय हो , तो इसमें जैव पदार्थ मिलाए जाते हैं । जैव पदार्थ ( कम्पोस्ट खाद् ) मृदा में अम्ल निर्मुक्त करते हैं , जो उसकी क्षारकीय प्रकृति को उदासीन कर देते हैं ।
कारखानों का अपशिष्ट
अनेक कारखानों के अपशिष्ट ( कचरे ) में अम्लीय पदार्थ मिश्रित होते हैं । यदि ऐसे अपशिष्ट पदार्थों को सीधे ही जलाशयों व नदियों में बहने दिया ( विसर्जित किया जाए , तो मछली और अन्य जलीय जीवों को अम्ल नष्ट कर सकते हैं । अतः कारखाने के अपशिष्ट को जलाशयों व नदियों में विसर्जित करने से पहले क्षारकीय पदार्थ मिलाकर उदासीन किया जाता है ।