खनिज लवणों (मिनरल्स) की मानव जीव के स्वस्थ रहने के लिए बड़ी विशिष्ट भूमिका है इनके असंतुलन या कमी से भी अनेक विकारों की उत्पत्ति होती है। प्रस्तुत इस लेख में हम जानेंगे कि इनके प्राकृतिक स्रोत क्या-क्या हैं? कैसे हम अपने भोजन में उन खाद्यों को सम्मिलित रखकर संतुलन बना सकते हैं।

गुड़, अंकुरित अनाज, चोकरयुक्त आटे की रोटी, हरी सब्जियाँ तथा सलाद एवं फल, छिलका सहित दालें या साबुत अनाज और दही इनसे लगभग सभी मिनरल्स की पूर्ति होना एक सरल उपाय है।
खनिज लवणों का महत्त्व
(1) सबसे अधिक महत्त्व इन खनिजलवणों का यह है कि रक्त की क्षारीयता को बनाए रखते हुए अतिअम्लता को बाहर निकालने में मददगार होते हैं, जिससे अनेक रोगों से बचाव होता हैं।
(2) नमक अम्लीय होता है, उसे नित्य शरीर बाहर निकाल देता है, वही नमक उपयोगी है, जो प्राकृतिक रूप से हमारे शाक-सब्जियों में पाया जाता हैं।
(3) खनिज लवण रक्तादि के निर्माण उसे गाढ़ा होने से बचाता है, जिससे हार्ट-ब्लाकेज आदि का खतरा नहीं रहता हैं।
(4) खनिज लवण विजातीय द्रव्यों को पेशाब, पसीना, श्वास और मल द्वारा बाहर निकालने तथा शरीर को विकार रहित बनाए रखने का कार्य करते हैं।
(5) स्नायुओं (तंत्रिकाओं) को बलशाली बनाने का कार्य करते हैं।
(6) त्वचा को निखारते हैं। सरदी, गरमी, बरसात आदि को सहने की शक्ति बढ़ाते हैं।
(7) हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए इन खनिज लवणों की बड़ी भूमिका होती है।
(8) वजन (मोटापा) पर नियंत्रण तथा मांसपेशियों को ताकतवर बनाने का कार्य करते हैं।
(9) मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में भी इनकी बड़ी भूमिका है।
(10) जीवनीशक्ति बढ़ाने, रोगों से लड़ने में तथा शरीर के मुख्य अंगों को स्वस्थ रखने में खनिज लवणों का अपना विशेष महत्त्व है।
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प्रमुख खनिज लवणों का कार्य एवं स्रोत सहित विवरण निम्न प्रकार है।
आयोडिन
कार्य – थायराइड, पैराथाइड ग्रंथियों की कार्यक्षमता बनाए रखने का कार्य करता है। मोटापा को नियंत्रित करता है।
कमी से होने वाले रोग — घेंघा, गलगंड, मोटापा, हाइपरथायराइड, हाइपोथायराइड के कारण उत्पन्न विभिन्न शारीरिक, मानसिक उपद्रव ।
स्त्रोत – सिंघाड़ा, पत्तागोभी, कमलगट्टा, मखाना, अनन्नास, फलों और सब्जियों के छिलकों के नीचे का हरा भाग, दूध, मक्खन, प्याज, लहसुन,धनिया।
मैग्नीशियम
कार्य – मस्तिष्क, स्नायुओं, त्वचा, अस्थि की कमजोरी दूर करता है। निडरता, साहस, आत्मविश्वास पैदा करता है।
कमी से होने वाले रोग– डिप्रेशन, अनिद्रा, चर्म रोग मांसपेशियों की कमजोरी, भयग्रस्तता, पेट की गड़बड़ी, निरुत्साह, मधुमेह, बिवाइयाँ फटना आदि।
मैग्नीशियम के स्त्रोत- पालक आदि पत्तेदार शाक, नारियल, बादाम, अखरोट, मूँगफली, काजू, पिश्ता, चोकर, साबुत अनाज, छिलका सहित दालें, अंकुरित अनाज, दूध, दही, पनीर, नीबू, टमाटर, नारंगी, संतरा, मौसमी, खजूर, किशमिश, मुनक्का, अंजीर, हरी मटर, गाजर, जौ, बाजरा, सेब, बेर, उबले आलू, चुकंदर आदि।
कैल्सियम
कार्य – कैल्सियम का सबसे बड़ा योगदान हमें अस्थि संस्थान में है। हड्डियों को स्वस्थ, सशक्त बनाए रखने के लिए तथा मांसपेशियों और तंत्रिका
तंत्र की मजबूती के लिए भी जरूरी है। श्वसन तंत्र को भी स्वस्थ रखने तथा गर्भ की सुरक्षा का भी योगदान करता है। खून के निर्माण में भी मददगार है।
कैल्सियम की कमी से रोग – शरीर में कमजोरी,
दुबलापन, स्नायु के रोग, हड्डियों में दरद, आस्टियोपोरोसिस, संधिवात, कमर का दरद, पीठ का दरद, गरदन का दरद, शरीर में अम्लीयता का बढ़ना।
कैल्सियम के स्रोत –तिल, गुड़, गेहूँ का चोकर, अलसी, सोयाबीन, पालक, चौलाई, मेथी, संतरा, नीबू, नारंगी, टमाटर, गाजर, गन्ना, आलू, प्याज, पत्तागोभी, फूलगोभी, पपीता, जामुन, अमरूद, अंजीर, नाशपाती, सेब, खीरा, खजूर, मुनक्का, किशमिश, अंगूर, बेर, खुबानी, पिश्ता, बादाम, अखरोट, दूध, दही, आदि ।
लोहा (आयरन)
कार्य – खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाना, खून की अम्लीयता को कम करना। गर्भ को पोषण देना। जीवनीशक्ति बढ़ाना। सुंदरता प्रदान करना।
लोहे की कमी से होने वाले प्रमुख रोग –
रक्ताल्पता (एनीमिया), कमजोरी, पांडु रोग, पाचन की गड़बड़ी, खून का पतलापन, थकावट आदि ।
लोहा (आयरन) के स्त्रोत – कमलगट्टा, गन्ना का रस, पालक, गुड़, अनार, खुबानी, सभी पके फल, सभी हरी सब्जियाँ, चोकर, दूध, सोयाबीन, साबुत दालें, अंकुरित अनाज, अंजीर, किशमिश, खजूर, मुनक्का, प्याज, सभी सूखे मेवे ।
फास्फोरस
कार्य – हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्सियम की तरह फास्फोरस और मैग्नीशियम की भी आवश्यकता होती है। मस्तिष्क, अंतःस्रावी ग्रंथियों, धमनियों तथा तंत्रिका तंत्र एवं बालों को भी फास्फोरस शक्ति देता है।
कमी से रोग- अनिद्रा, पागलपन, स्मरणशक्ति
का ह्रास इत्यादि रोग फास्फोरस की कमी से हो जाते हैं। स्नायु की दुर्बलता भी बढ़ जाती है। बालों का असमय सफेद होना, बालों का झड़ना, मानसिक रूप से थकावट महसूस करना, कमजोरी, नर्वस सिस्टम की कमजोरी, हड्डियों के रोग आदि।
फास्फोरस के स्त्रोत- जौ, गेहूँ, बाजरा, दूध, के गाजर, खीरा, ककड़ी, टमाटर, नीबू, संतरा, सेब,
अमरूद, नाशपाती, पपीता, जामुन, बेर, अंजीर, मुनक्का, किशमिश, सेम, पालक, गोभी, पनीर, मसूर, 3/(4 ^ 1) आदि में पर्याप्त होता है।
क्लोरीन
कार्य – आंतरिक शरीर की सफाई, जोड़ों और मांसपेशियों को ठीक बनाए रखने तथा अनावश्यक वजन को घटाने में सहायक तथा आँतों की रक्षा करना आदि ।
कमी से रोग – नाड़ी तंत्र के विकार, पाचन की गड़बड़ी, शरीर में मल की वृद्धि, शरीर में चरबी बढ़ना, पायोरिया आदि ।
क्लोरीन के स्त्रोत – मूली, नीबू, अनन्नास, खीरा, प्याज, गाजर, गाय या बकरी का दूध, पत्तागोभी, खजूर, अनार, केला, खाने वाला नमक, पालक, पनीर आदि में क्लोरीन होता है। मूली में सर्वाधिक होता है
सोडियम
कार्य – प्राकृतिक सोडियम शरीर में लोहा पहुँचाने में सहायक होता है। मांसपेशियों में लोच बनी रहती है।
सोडियम की कमी से रोग- पेट की गड़बड़ी,
अपच, मोतियाबिंद, बहरापन, पित्त की कमी, गुरदे
के रोग आदि ।
सोडियम के स्रोत – सोडियम सभी ताजे फलों और हरी सब्जियों में, पत्तेदार हरे शाक, दूध, पनीर, ककड़ी में पाया जाता है।
पोटैशियम
कार्य – पोटैशियम रक्त-नलिकाओं को लचीला – बनाए रखता है, जिससे उच्च रक्तचाप और हृदय रोग से बचाव होता है। यकृत को बल देता है। स्नायुओं और अस्थि को स्वस्थ रखता है। घाव भरने का कार्य जल्दी करता है।
कमी से रोग- अम्लता का बढ़ना, यकृत, तिल्ली का बढ़ना, कब्ज, मुहाँसा, चेहरे की झाइयाँ,दरद आदि।
पोटैशियम के स्रोत – लौकी, ककड़ी, खीरा, तरबूज, सेब, हरी मटर, ताजे फल, सब्जियाँ तथा सूखे मेवे।
मिनरल्स की गोलियाँ खाने की अपेक्षा प्राकृतिक रूप से उपलब्ध प्रकृतिप्रदत्त खाद्यों से शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना उत्तम है।