भारत में गेहूं के बाद उगाया जाने वाला दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अनाज / फसल मक्का है। देश में मक्का की खेती मैदानी क्षेत्रों से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों तक की जाती है। इसे समुद्र सतह से 27 हजार मीटर के ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में भी सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। मक्का मनुष्य और पशुओं के आहार के अवयव के अलावा औद्योगिक नजरिये से भी खास है इसलिए इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स और प्रोटीन जैसे पोषक पदार्थ भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह सुपाच्य अनाज है जिसमें फास्फोरस, मैगनीज, मैग्नीशियम, कॉपर, जिंक और आयरन से खनिज तत्व भी होते हैं।

मक्का का उपयोग:
मक्का एक ऐसी फसल है जो हमारे देश में तीनों सीजन खरीफ, रबी और जायद में की जाती है। कई प्रांतों में इसकी खेती खरीफ सीजन में की जाती है तो कई जगहों पर यह रबी और जायद की प्रमुख फसल है। वैसे तो मक्का कई तत्वों से भरपूर होती है लेकिन प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट प्रमुख मात्रा में पाए जाते हैं। यह स्वादिष्ट होने के साथ पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसका भोजन सुपाच्य और टेस्टी होता है। इसमें मैग्नीशियम, जिंक, फास्फोरस, कॉपर समेत कई खनिज तत्व भी प्रमुखता से पाए जाते हैं। हमारे देश में यह मनुष्य और पशुओं का प्रमुख आहार है। वहीं कई औद्योगिक क्षेत्रों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
मक्का की खेती के लिए उचित समय जलवायु और समय
हमारे देश में मक्का की खेती तीनों ऋतुओं खरीफ, रबी और जायद में उगाई जाती है। खरीफ का सीजन जून और जुलाई, रबी का सीजन अक्टूबर और नवंबर तथा जायद का सीजन फरवरी और मार्च के महीने होती है। खरीफ के मौसम में बारिश के आने से पहले मक्का की बुवाई करना चाहिए। मक्का की बुवाई 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई में करनी चाहिए।
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मक्का की खेती के लिए बुवाई का तरीका : –
अच्छी पैदावार लेने के लिए मक्का की बुवाई के दौरान दूरी का विशेषतौर पर ध्यान रखना चाहिए। यह दूरी बीजों की किस्म के मुताबिक रखी जाती है। जैसे शीघ्र पकने वाली किस्मों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर, मध्यम और देरी से पकने वाली किस्मों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 75 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखना चाहिए। चारे के रूप में बोई जाने वाली मक्का में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखी जाती है।
मक्का की प्रमुख किस्में : –
भारत में मक्का की कई देसी और संकर किस्मों की बुवाई की जाती है। इसकी प्रमुख किस्मों में विवेक, जवाहर मक्का, पूसा अर्ली हाइब्रिड, एचएम 10, गंगा 11, डेक्कन 105, प्रताप हाइब्रिड, एचएम 10 आदि है।
बुवाई का समय
1. खरीफ – जून से जुलाई तक ।
2. रबी :- अक्टूबर से नवम्बर तक।
3. जायद :- फरवरी से मार्च तक ।
मक्का की बुवाई के लिए खेत की तैयारी :
अच्छे उत्पादन के लिए खेत में 5 से 8 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए। यदि खेत में जिंक की कमी हो तो बारिश से पहले खेत में 25 किलो जिंक सल्फेट डालें। मक्का की फसल के लिए खाद और उर्वरक की मात्रा, किस्म के अनुसार डाले। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए। याद रहे नाइट्रोजन की पहली खुराक बुवाई के समय, दूसरी खुराक एक महीने बाद, तीसरी खुराक नरपुष्पों के आने से पहले देनी चाहिए।
मक्का की खेती के लिए सिंचाई
मक्का की फसल के लिए एक अवधि में 400-600 मी.मी पानी की जरूरत पड़ती है। इसमें पानी की सिंचाई उस समय करना जरूरी होता है जब फूल आ रहे हो और दाने भरने का समय हो। वहीं खरपतवार नियंत्रण के लिए 25 से 30 दिनों में निदाई-गुड़ाई करनी चाहिए। खरपतवार निकालते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पौधों की जड़े न करें। इससे फसल खराब हो सकती है। वहीं मक्का की फसल के साथ अधिक मुनाफे के लिए अन्य वैकल्पिक फसल उड़द, मूंग, सोयाबीन, तिल आदि की भी बुवाई कर सकते हैं।
मक्का की फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन
मक्का की फसल को आवारा पशुओं के अलावा कीटों से अधिक नुकसान होता है। दरअसल, मक्का का दाना मीठा होता है इसलिए कीटों का प्रकोप तेजी से बढ़ता है। वहीं पत्तियों में झुलसा रोग और तना सड़ने का खतरा बना रहता है। इसलिए रोग प्रतिरोधक किस्मों की बुवाई करना उचित रहेगा।
मक्का की फसल की कटाई एवं भंडारण मक्का कटाई के बाद इसके भंडारण के विशेष रूप से कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। इससे मक्का की फसल अधिक समय तक अच्छी रहती है। दरअसल, इसके दानों में लगभग 25% तक नमी रहती हैं इसलिए मक्के के दाने निकालने से पहले इसे धूप में अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए। भंडारण करने के समय दानों में केवल 12% की नमी ही ठीक है।