अनुवांशिकी के जनक ग्रेगर मेंडेल का शुरुआती जीवन परिचय Gregor Mendel, the father of genetics

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ग्रेगर मेंडेल का शुरुआती जीवन परिचय

18-19वीं सदी के मध्य यूरोप में स्थित एक छोटा – सा राज्य था , ‘ उत्तरी मोराविया । उस समय यह ऑस्ट्रिया – हंगरी साम्राज्य का अंग था । उत्तरी मोराविया में एक छोटा – सा कस्बा था- हाइत्सेनडोर्फ । यह मध्य यूरोप का एक पिछड़ा हुआ और कृषि प्रधान इलाका था । हाइत्सेनडोर्फ अब ‘ हिचित्से से ‘ कहलाता है और चेक गणराज्य में है । उस समय हिचिंत्से में एक साधारण किसान परिवार रहता था । यह परिवार था , मेंडेल दंपत्ति का । उनकी एक दो साल की गुड़िया जैसी सुंदर बेटी थी । नाम था वेरोनिका परिवार का गुजर – बसर खेतीबाड़ी और मधुपालन से अच्छी तरह चल जाता था । एंटन मेंडेल एक जागरूक किसान थे । अपने खेती के एक हिस्से में उन्होंने फलों के भी कुछ पेड़ लगा रखे थे । इससे भी उन्हें कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी । पत्नी रोजिना श्विटलिच मेंडेल एक धर्मपरायण महिला थीं । घर के कामों के अलावा वे एंटन के कामों में भी हाथ बंटाती थीं , लेकिन दोनों पति – पत्नी बहुत उदास रहते थे । बात यह थी कि उनकी पहली दोनों पुत्रियों की मृत्यु बचपन में ही बीमारी के कारण हो गई थी ।

अनुवांशिकी के जनक ग्रेगर मेंडेल- The Genetic Scientist Gregor Mendel

22 जुलाई 1822।
एंटन मेंडेल और उनकी पत्नी बड़े ही खुश थे । होते भी क्यों न ? आज उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया था । उनकी बड़ी इच्छा थी कि भगवान यीशु उन्हें एक बेटा दे दें ! बस और कुछ नहीं चाहिए ! बालक का नाम रखा गया- योहान ! योहान मेंडेल ! योहान को उन्होंने बड़े लाड़ – प्यार से पाला । उन्होंने सोच लिया था कि योहान को वे खूब पढ़ाएंगे , ताकि बड़ा होकर वह कुछ ढंग का आदमी बन सके ! वे नहीं चाहते थे कि योहान भी उन्हीं की तरह एक साधारण किसान की जिंदगी जीए । एंटन आठ वर्षों सेना में फौजी रह चुके थे । उन्होंने दुनिया देखी थी और जानते थे कि अच्छी और इज्जत की जिंदगी क्या होती है ।

योहान जब पांच वर्ष का हुआ तो उसे पास के ही एक स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया । कहते हैं , ‘ होनहार बीरवान के होत चिकने पात ” वह बचपन से ही तेज और बुद्धिमान था । वह मेहनती भी बहुत था वह स्वभाव से बड़ा जिज्ञासु था , परंतु थोड़ा – थोड़ा शर्मीला भी बहुत बातें करने से कतराता था वह स्कूल से लौटने और होमवर्क करने के बाद वह पिता के कामों में मदद करता था । इससे एंटन को खुशी होती थी । छुट्टियों में खेती और मधुमक्खी पालन की बारीकियों को वह बहुत गौर से देखता और समझने की कोशिश करता था । इस बारे में वह अकसर अपने पिता से बालसुलभ सवाल भी करता था , लेकिन एंटन बड़े सहज भाव से उसके सवालों के जवाब देते और समझाते थे ।

अनुवांशिकी के जनक ग्रेगर मेंडेल -The Genetic Scientist Gregor Mendel

समय बीतता गया ! योहान स्कूल की परीक्षा में अव्वल आय । उस समय वह 11 साल का हो चुका था । उसे आगे की पढ़ाई के लिए लेपनिक के एक स्कूल में भेजा गया । यह स्कूल पूरे इलाके में सबसे अच्छा माना जाता था । यहां सामान्य विषयों के अलावा विज्ञान , प्राकृतिक इतिहास , बागवानी और मधुमक्खी पालन भी पढ़ाया जाता था , लेकिन लेपनिक हिचिंत्से से 20 किलोमीटर दूर था । योहान को इतनी दूर भेजने में एंटन शुरू में कुछ झिझके भी थे , परंतु अपने एक दोस्त , फादर श्राइबर की सलाह पर वे इसके लिए तैयार हो गए ।

आइबर स्थानीय मठ के स्कूल में प्रकृति विज्ञान और इतिहास पढ़ाते थे । उन्हें बागवानी और मधुमक्खी पालन के अलावा पौधों में कृत्रिम संकरण का भी अच्छा ज्ञान था । एंटन बागवानी और मधुमक्खी पालन पर हमेशा उनसे सलाह – मशविरा किया करते थे । पादरी योहान से काफी प्रभावित थे । वे होनहार बालकों के लिए उच्च शिक्षा को समाज के विकास के लिए बहुत जरूरी तत्त्व मानते थे । उन्हें यह देख कर बहुत दुःख होता था कि समाज के होनहार और तेज बच्चे धन की कमी के कारण पढ़ नहीं पाते हैं । समाज को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए ।

योहान इस बार भी स्कूल की परीक्षा में अव्वल आया । आगे की पढ़ाई के लिए अब उसे दूर स्थित किसी उच्च विद्यालय में दाखिला लेना था । योहान को उच्च शिक्षा पाने की बड़ी ललक थी । पिता एंटन भी यही चाहते थे , लेकिन परिवार की माली हालत उन्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं दे रही थी । बड़ी बेटी वेरोनिका की शादी करना उनके लिए ज्यादा जरूरी था । इसके लिए कई सालों से वे एक सुयोग्य लड़के की तलाश कर रहे थे । बात बन गई थी । उन्होंने वेरोनिका की शादी अलोइस स्ट्रम नाम के एक लड़के से कर दी । योहान को आगे पढ़ाने में भी उन्होंने बड़ी हिम्मत दिखाई । अपने दोस्तों से कुछ रुपये उधार लेकर योहान का नाम त्रोपाउ के इंपीरियल रॉयल जिमनाजियम में लिखाया गया ।

त्रोपाउ का यह ग्रामर स्कूल हिचिंत्से से 70 किलोमीटर दूर था । उस जमाने में यह इलाके का सर्वश्रेष्ठ स्कूल था । यहां के सभी शिक्षक बहुत योग्य थे । एक साधारण किसान परिवार के बेटे का वहां पढ़ना बहुत बड़ी बात थी । योहान भी परिवार की माली हालत को अच्छी तरह समझते थे । उन्हें कभी – कभी लगता था कि वे पिता पर नाहक ही बोझ बनते जा रहे हैं । पिता का आर्थिक भार कम करने और अपनी पढ़ाई जारी रखने के ख्याल से उन्होंने छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया । ट्यूशन से हुई आमदनी वे अपनी पढ़ाई पर खर्च करने लगे । इस तरह उनकी पढ़ाई ठीकठाक चलने लगी ।

ग्रेगर मेंडेल का शुरुआती जीवन में हादसा

इसी बीच 1838 में उनके परिवार में एक बड़ा हादसा हो गया । उस समय उनकी उम्र 16 वर्ष की थी । उनके पिता खेतों में काम कर रहे थे । अचानक पास के पेड़ से एक भाटी डाली टूटकर उन पर आ गिरी । उन्हें बहुत गहरी चोट लगी और वे बुरी तरह घायल हो गए । काफी दवा – दारू कराने के बाद भी वे ठीक नहीं हो सके और बीमार रहने लगे । उनकी पसलियां टूट गई थीं । अब उनसे खेतीबाड़ी का काम नहीं हो सकता था । परिवार पर तो जैसे संकट का पहाड़ ही टूट गया था । खबर पाते ही योहान घर आए । पिता की हालत देखकर वे बड़े दुःखी हुए , लेकिन वे कर भी क्या सकते थे ?

अनुवांशिकी के जनक ग्रेगर मेंडेल - The Genetic Scientist Gregor Mendel
The Genetic Scientist Gregor Mendel

कुछ दिन घर पर रुककर वे त्रोपाउ चले गए । परिवार की माली हालत बदतर होती जा रही थी । कभी – कभी तो पूरे परिवार को आधा पेट खाकर ही सोना पड़ता था । इतनी तंगी के बावजूद एंटन योहान की पढ़ाई बाधित होने देना नहीं चाहते थे , लेकिन वे लाचार थे । स्थिति को समझते हुए योहान ने और भी अधिक बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया । इसमें उन्हें काफी समय देना पड़ता था । साथ ही वे मन लगाकर पढ़ते भी रहे । अभावों में जीना उन्होंने सीख लिया था । खैर ! किसी तरह स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई । इस बार वे परीक्षा में पहला स्थान नहीं पा सके , लेकिन अंक उन्हें अच्छे ही मिले थे ।

अब योहान की भूख बहुत बढ़ गई थी । यह भूख थी , ज्ञान की सब कुछ जान लेने की वे कॉलेज की पढ़ाई भी करना चाहते थे , लेकिन यह संभव होता नहीं दिख रहा था । परिवार से आर्थिक मदद की उम्मीद करना बेमानी होता । पिता काफी बीमार रहने लगे थे और बहुत कमजोर हो गए थे । खेतीबाड़ी भी चौपट हो गई थी । उन्होंने खेती का कुछ हिस्सा बटाई पर बड़े दामाद को दे दिया था । अब वे ही परिवार की जिम्मेदारी निभाने लगे थे । आधी खेती उन्होंने बेच दी थी । इससे प्राप्त रुपयों का कुछ हिस्सा उन्होंने छोटी बेटी तेरेंजिया को दे दिया था ऐसा उन्होंने इसलिए किया था , ताकि वह परिवार की अन्य जरूरतों में खर्च न होकर बेटी के दहेज और शादी में काम आ सके । उन्हें छोटी बेटी की शादी की चिंता बहुत सताने लगी थी । उसकी शादी करके वे दुनियादारी से शीघ्र मुक्त होना चाह रहे थे ।
योहान के जीवन में ये दिन कठिनाइयों और दुःखों से भरे हुए थे चारों ओर अंधेरा था और आगे कोई रास्ता नजर नहीं आता था परिवार और पढ़ाई के बारे में सोच – सोचकर वे बहुत परेशान हो जाते थे । वे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए बड़े – से – बड़े त्याग करने को तैयार थे , लेकिन केवल ट्यूशन के बल पर यह संभव नहीं था । नामांकन के लिए तो पैसों का इंतजाम किसी प्रकार किया जा सकता था , लेकिन और खर्चों का इंतजाम ? ये बहुत चिंतित रहने लगे । बड़ी बहन और बहनोई से भी उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई के बारे में चर्चा की और कुछ मदद करने को कहा , लेकिन उन लोगों ने मुंह फेर लिया ।

एक दिन भाई को बहुत चिंतित देखकर तेरेंजिया ने योहान से पूछा , ” क्या बात है भाई ? देखो ! मैं तुमसे बहुत छोटी हूं लेकिन इधर कई दिनों से देख रही हूं कि तुम बातें भी बहुत कम करने लगे हो । बस चिंतित और परेशान नजर आते हो । मैं भी तो जानू कि कौन – सी चिंता तुम्हें खाए जा रही है ? शायद मैं कुछ कर सकूं और तुम्हारी परेशानी बांट सकूं ! ” छोटी बहन की बात सुनकर योहान की आंखों से आंसू फूट पड़े । ” क्या बताऊं बहन ! ” उन्होंने कहा , ” घर और पिताजी की हालत तो तुम देख ही रही हो । आगे पढ़ना चाहता हूं , लेकिन पैसों की कमी के कारण यह संभव नहीं दिखता ! नाम लिखाने के लिए तो किसी तरह इंतजाम हो जाएगा , परंतु पढ़ाई जारी रखने के लिए केवल ट्यूशन से होने वाली आमदनी से काम नहीं चलनेवाला क्या किया जाए , समझ में नहीं आ रहा है । लगता है , पढ़ना – लिखना हम जैसों के भाग्य में लिखा ही नहीं गया है । ”

अनुवांशिकी के जनक ग्रेगर मेंडेल - The Genetic Scientist Gregor Mendel

छोटी बहन ने उनकी बड़ी हिम्मत बंधाई । कहा , ” देखो , पिता जी ने मुझे कुछ पैसे दहेज के लिए दिए हैं । अभी मैं इसमें से कुछ निकालकर तुम्हें दे सकती हूं । कॉलेज में नाम लिखा लो और पढ़ाई शुरू कर दो आगे की आगे देखी जाएगी : ऊपरवाला भगवान भी तो सब देख रहा है । जो भी होगा , ठीक ही होगा ! ” योहान को तेरेंजिया की बातों में उम्मीद की एक किरण सी दिखाई दी । सोचा , ठीक ही कहती है । भविष्य और भाग्य को कौन जानता है । उन्होंने कॉलेज में दाखिला ले लिया ।

ग्रेगर मेंडेल का विश्वविद्यालय में दाखिला

योहान ने 1840 में ओलमुत्स विश्वविद्यालय के ब्रह्मविद्यापीठ ( थियोसोफिकल इंस्टीट्यूट ) में दाखिला ले लिया । वे वहां 1918 तक रहे । वे खूब मन लगाकर पढ़ने लगे । शिक्षकों के लैक्चर वे बड़े ध्यान से सुनते और नोट करते थे । जल्द ही उन्होंने अपनी प्रतिभा और व्यवहार से शिक्षकों और सहपाठियों को प्रभावित कर लिया । विज्ञान और गणित उनके प्रिय विषय थे । अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें काफी समय ट्यूशन में भी देना पड़ता था । फिर भी उनकी पढ़ाई ठीक – ठाक चलती रही । पहले दो वर्षों तक कोई खास दिक्कत नहीं हुई । हां , कभी – कभार घर का समाचार पाकर वे परेशान अवश्य हो जाते थे , लेकिन तीसरा साल ठीक नहीं रहा । कड़ी मेहनत ट्यूशन और कम भोजन के कारण उनका स्वास्थ्य दिन – ब – दिन गिरने लगा । वे अकसर बीमार भी हो जाते थे । पैसों की कमी तो रहती ही थी । उन्हें लगने लगा था कि इस तरह तो काम नहीं चल सकेगा । विद्यापीठ की पढ़ाई पूरी करना बहुत मुश्किल हो रहा था । इस बात की चर्चा उन्होंने अपने नजदीकी दोस्तों से की । उन्होंने पढ़ाई छोड़ देने का निश्चय कर लिया था । अधिक – से – अधिक क्या होगा ? घर की खेती और मधुपालन से जिंदगी किसी तरह चल ही जाएगी । किसी तरह यह बात उनके शिक्षकों के कानों तक पहुंच गई ।

उन दिनों छात्रों और शिक्षकों का संबंध बहुत अच्छा हुआ करता था । मेधावी छात्रों का तो वे खास ख्याल रखते थे । यथासंभव उनकी मदद भी वे कर देते थे । एक दिन उनके भौतिकी के प्रोफसर फ्रेडरिक फ्रांत्स ने योहान को बुलाया और पूछा , ” योहान ! सुना है , तुम पढ़ाई छोड़ना चाहते हो ? अगर यह सच है , तो तुम मुझे इसका कारण बताओ । शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं । ”

फ्रांस , मेंडेल को अच्छी तरह पहचान चुके थे । उनका ख्याल था कि मेहनत और प्रतिभा में यह किशोर विलक्षण और अतुलनीय है यदि यह विश्वविद्यालय की पढ़ाई पूरी कर लेता है , तो समाज को कुछ दे सकता है । मेंडेल की आंखें नम हो गईं । ” सर आगे और पढ़ना अब मेरे बस की बात नहीं है ! ” उन्होंने कहा , ” आगे पढ़ने की तो मेरी बड़ी इच्छा है , लेकिन परिवार की माली हालत ऐसी नहीं है कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर सकूं । पिताजी बहुत बीमार रहते हैं । वे अपाहिजों जैसे हो गए हैं । मुझे मेरे बहनोई को सौंप दिया । बहन – बहनोई मेरी मदद करना नहीं चाहते हैं । छोटी बहन की मदद से यहां तक पहुंच पाया हूं ! ”

स्थिति दुःखद थी । फ्रांस गंभीर हो गए । उन्होंने मेंडेल को ट्यूशन करने की सलाह दी , लेकिन मेंडेल के लिए और अधिक ट्यूशन करना संभव नहीं था । आखिरी क्लास का पूरा साल बरबाद हो गया था । बीमारी के कारण उन्हें घर जाना पड़ा था । प्रोफेसर चाहते थे कि यह किशोर किसी तरह विश्वविद्यालय की पढ़ाई समाप्त कर ले । उन्होंने मेंडेल को राय दी कि अगर वह जीवन में पढ़ – लिख कर कुछ करना चाहता है , तो मठ में दीक्षा ले ले । मोराविया में 1350 में स्थापित संत अगस्तिन धर्मसंघ का ब्रून में संत थॉमस चर्च था । उनके विचार में इस मठ के अध्यक्ष किरील नैप दयालु और विद्वान तो थे ही , उनके विचार भी काफी प्रगतिशील थे । एक कैथोलिक होने के बावजूद वे वैज्ञानिक विचारों को बढ़ावा देते थे । फ्रांत्स , किरील नैप को अच्छी तरह जानते थे अगर मेंडेल इसके लिए तैयार हो जाता है , तो मठ में उसका जीवनयापन और पढ़ाई के साथ – साथ उसे कुछ आर्थिक लाभ भी हो जाया करेगा ।

मेंडेल को जैसे तिनके का सहारा मिल गया । उन्होंने मठ में दीक्षा लेने के लिए हामी भर दी । उनका भविष्य तय हो गया था । कुछ ही समय के बाद छोटी बहन तेरेंजिया की शादी बिना दहेज के ही ल्युपाल्ड शिंडलर नामक युवक से हो गई । ये मेंडेल के जीवन में खुशी के क्षण थे । बाद में मेंडेल ने लिखा था , ” कभी – कभी जीवन में मैं एक ऐसा ठहराव पाने के लिए असहाय अनुभव करता था , जो मुझे इस कटु जीवन से मुक्ति दिला दे ! “

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